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30 मार्च, 2021

हेल्थ इंश्योरेंस में पहले से मौजूद बीमारियां

भारत में रहने वाले एक व्यक्ति का औसत मेडिकल खर्च वर्ष-दर-वर्ष बढ़ता जा रहा है, साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति का औसत स्वास्थ्य खराब हो रहा है. यानि हममें इन्फेक्शन होने की संभावना हमारे माता-पिता से ज़्यादा है और जैसे हमारे माता-पिता को उनसे पहले की पीढ़ी से ज़्यादा संभावना थी. ऐसी समस्याओं से जुड़ा फाइनेंशियल जोखिम कम करने के लिए ही हम हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं. अक्सर किसी भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में ऐसे कई क्लॉज़ होते हैं, जो हमारी समझ से नहीं आते हैं. ऐसा ही एक क्लॉज़ है - पहले से मौजूद बीमारियां. पहले से मौजूद बीमारी का मतलब आईआरडीएआई की परिभाषा के अनुसार, पहले से मौजूद बीमारी का मतलब ऐसी कोई भी समस्या, बीमारी, चोट या रोग है, जिसकी डाइग्नोसिस किसी डॉक्टर ने इंश्योरेंस कंपनी द्वारा पॉलिसी जारी या बहाल किए जाने की प्रभावी तिथि से पहले के 48 महीने के भीतर की हो या जिसके लिए किसी डॉक्टर ने इंश्योरेंस कंपनी द्वारा पॉलिसी जारी करने या बहाल किए जाने की प्रभावी तिथि से पहले के 48 महीने के भीतर मेडिकल सलाह या इलाज सुझाया हो या किया हो. आसान शब्दों में कहें, तो पहले से मौजूद बीमारी एक ऐसी बीमारी है, जिसे आपमें पॉलिसी लेने से पहले के 2 वर्षों के भीतर डाइग्नोस किया गया हो. यह आगे चलकर गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है. हेल्थ इंश्योरेंस में पहले से मौजूद बीमारियों के मानदंडों में क्या-क्या शामिल और क्या-क्या शामिल नहीं हैं? हेल्थ इंश्योरेंस में पहले से मौजूद बीमारियों में आमतौर पर ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरॉइड और कोलेस्टेरॉल जैसी सामान्य बीमारियां शामिल हैं. यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि बुखार, वायरल फ्लू, खांसी और ज़ुकाम जैसी आम बीमारियां, जिनकी आगे चलकर गंभीर होने की संभावना नहीं होती, पहले से मौजूद बीमारियों में शामिल नहीं हैं. क्या पहले से मौजूद बीमारियों को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी कवरेज से पूरी तरह बाहर रखा गया है? हेल्थ इंश्योरेंस में पहले से मौजूद बीमारियां क्या हैं, यह जानने के बाद लोगों के मन में आमतौर पर यह सवाल उठता है कि क्या पहले से मौजूद बीमारियों के सारे क्लेम हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज से बाहर रखे गए हैं. इसका जवाब है, ‘नहीं’’. हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां ऐसी बीमारियों से जुड़े क्लेम प्रतीक्षा अवधि पूरी होने के बाद मंज़ूर करती हैं. प्रतीक्षा अवधि वह समय है, जिस दौरान इंश्योर्ड व्यक्ति मौजूदा बीमारियों के संबंध में क्लेम नहीं कर सकता है. यह अवधि आमतौर पर 2 से चार वर्ष की होती है और इंश्योरेंस कंपनी पर निर्भर करती है. अगर आप कुछ ही समय बाद इस बीमारी से जुड़ा क्लेम करने की उम्मीद रख रहे हैं, तो कम प्रतीक्षा अवधि वाली पॉलिसी लेना बेहतर है. पहले से मौजूद बीमारियों के मामले में ध्यान रखने लायक बातें पहले से मौजूद बीमारी की पहचान सबसे पहले, संभावित पॉलिसीधारक को पहले से मौजूद बीमारी का मतलब बताया जाता है, जिससे उसके लिए यह आंकना और तय करना आसान हो जाता है कि उसे ऐसी कोई बीमारी है या नहीं. पहले से मौजूद बीमारियों से निपटने के लिए हमारी सलाह है कि आप ज़्यादा सम इंश्योर्ड चुनें. सभी मेडिकल जानकारी दें इंश्योरेंस कंपनी आपकी दूसरी मौजूदा बीमारियों के बारे में भी पूछ सकती है; कुछ दूसरी कंपनियां केवल पिछले 2 से 5 वर्ष का मेडिकल विवरण मांगती हैं. यह बात कंपनी और पॉलिसी के नियमों और शर्तों पर निर्भर है. पॉलिसीधारक को सारी जानकारी पूरी तरह और सही-सही देना चाहिए. प्री-इंश्योरेंस हेल्थ चेक-अप पहले से मौजूद बीमारियों की पहचान के लिए आपको मेडिकल चेक-अप से गुज़रना पड़ सकता है, जिसमें आपकी सेहत की स्थिति जांची जाती है. प्रतीक्षा अवधि के हिसाब से पॉलिसी चुनना अगर आप कुछ समय बाद स्वास्थ्य खराब होने की उम्मीद कर रहे हैं, तो हमारी सलाह है कि आप कम प्रतीक्षा अवधि वाली पॉलिसी चुनें. यह आकलन आपको खुद अपनी बीमारियों के आधार पर करना होगा. अगर मैं पहले से मौजूद बीमारियों का खुलासा न करूं, तो क्या होगा? पहले से मौजूद बीमारी का खुलासा न करने पर पॉलिसी का रिन्यूअल नामंज़ूर हो सकता है या ऐसी बीमारियों के क्लेम नामंज़ूर हो सकते हैं. क्या पहले से मौजूद बीमारियों का प्रीमियम की राशि पर कोई असर पड़ता है? हां, आमतौर पर, पहले से मौजूद बीमारियों के मामले में इंश्योरेंस प्रीमियम ज़्यादा होता है, क्योंकि ऐसे मामलों में क्लेम होने की संभावना ज़्यादा होती है. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न क्या पहले से मौजूद बीमारियों की प्रतीक्षा अवधि घटाने का कोई तरीका है? हां, प्रीमियम के ऊपर कुछ अतिरिक्त राशि का भुगतान करने पर प्रतीक्षा अवधि घटाकर एक वर्ष की जा सकती है. क्या पहले से मौजूद बीमारी से कवरेज की राशि पर असर पड़ता है? नहीं, कोई भी इंश्योरेंस कवरेज एक व्यक्तिगत फैसला होता है और इसका पहले से मौजूद बीमारियों से कोई लेना-देना नहीं है. रमेश ने पूछा, "मुझे हार्ट अटैक हुआ था और मुझे बायपास कराना है. मुझे यह बात पॉलिसी लेने के छः महीने बाद पता चली है. क्या इसे पहले से मौजूद बीमारी माना जाएगा?” नहीं, क्योंकि बीमारी का पता पॉलिसी लेने के बाद चला है, इसलिए इसे पहले से मौजूद बीमारी नहीं कहा जा सकता है. ध्यान ने पूछा, "अगर मुझे पता है कि मुझे ऐसी कोई बीमारी है, जिसे पहले से मौजूद बीमारियों में गिना जाता है, और मैं इंश्योरेंस कंपनी को यह बात न बताऊं, और बाद में कभी इस बीमारी के कारण मुझे हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़े, और मैं उसका क्लेम करूं, तो क्या होगा?" इंश्योरेंस कंपनी पहले से मौजूद बीमारी के बारे में नहीं बताने के आधार पर क्लेम नामंज़ूर कर सकती है.

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