इंश्योरेंस कंपनियों के पास अक्सर ऐसे सेकेंड हैंड कार इंश्योरेंस क्लेम के मामले आते हैं, जिनमें नया कार मालिक, कार खरीदने के बाद अपने नाम पर इंश्योरेंस पॉलिसी ट्रांसफर कराए बिना, वाहन को पहुंचे नुकसान के लिए क्लेम करता है. यह क्लेम स्वीकार नहीं किया जाता, क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी और वाहन के नए मालिक के बीच एक मान्य अनुबंध नहीं होता है. हाल ही के मामले में, पुणे कंज़्यूमर कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया और इंश्योरर द्वारा क्लेम का भुगतान न करने के फैसले को सही करार दिया, क्योंकि वाहन के दूसरे मालिक ने इंश्योरेंस पॉलिसी अपने नाम ट्रांसफर नहीं कराई थी. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इंश्योरेंस पॉलिसी, पॉलिसीधारक और इंश्योरर के बीच एक अनुबंध है. अगर मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी पर नए वाहन मालिक का नाम नहीं है, तो इसका मतलब है कि वाहन के नए मालिक और इंश्योरेंस कंपनी के बीच कोई मान्य अनुबंध नहीं है. ऐसे में नए मालिक को दुर्घटना की वजह से पहुंचने वाले नुकसान को पिछली पॉलिसी के तहत स्वीकारा नहीं जा सकता है. भारत में, लोगों में इंश्योरेंस के बारे में कम जागरूकता होने के कारण, नुकसान के बाद इंश्योरेंस से जुड़ी ऐसी शिकायतें करना आम बात है. सेकेंड हैंड वाहन खरीदने वाले या खरीदने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए यह जानना आवश्यक है कि इंश्योरेंस को ट्रांसफर कराना, उतनी ही आवश्यक है, जितना कि वाहन खरीदना, इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए और न ही इसमें लापरवाही बरतनी चाहिए. आपकी पॉलिसी का ट्रांसफर उतना ही आसान है, जितना कि
ऑनलाइन फोर व्हीलर इंश्योरेंस खरीदारी. इसके अलावा, वाहन बेचने वाले व्यक्ति की भी यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह सुनिश्चित कर ले कि भविष्य में होने वाली किसी भी कानूनी परेशानी से बचने के लिए नए मालिक के नाम पर इंश्योरेंस ट्रांसफर कर दिया गया है. यहां हम बताएंगे कि कैसे इंश्योरेंस को ट्रांसफर न करना, खरीदार और मोटर वाहन बेचने वाले व्यक्ति, दोनों को प्रभावित करता है. हम आपको इंश्योरेंस ट्रांसफर की आसान प्रक्रिया के बारे में भी बताएंगे ताकि आप आसानी से इंश्योरेंस ट्रांसफर कर सकें. इसके बारे में जानने से पहले मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी के बारे में समझना आवश्यक है. कम्प्रीहेंसिव मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी के दो भाग होते हैं - ओन डैमेज (ओडी) और थर्ड पार्टी (टीपी). लायबिलिटी कवरेज सेक्शन वाली पॉलिसी, जैसे
थर्ड पार्टी कार इंश्योरेंस , आपके वाहन के कारण किसी तीसरे व्यक्ति को होने वाले नुकसान को कवर करता है और कानून के अनुसार अनिवार्य है, ओडी सेक्शन किसी दुर्घटना के कारण आपके वाहन को होने वाले नुकसान को कवर करता है. पॉलिसी की तुलना करने से आपको
कार इंश्योरेंस की सबसे कम दरें का लाभ उठाने का मौका मिलता है और इससे आप कानूनी देयताओं के साथ-साथ फाइनेंशियल रूप से भी सुरक्षित रहते हैं. सेकेंड हैंड कार खरीदने पर, मोटर वाहन अधिनियम के सेक्शन 157 के अनुसार नए वाहन मालिक की ज़िम्मेदारी है कि वह वाहन खरीदने के पहले 14 दिनों के भीतर, अपने नाम पर इंश्योरेंस पॉलिसी ट्रांसफर कराने के लिए इंश्योरेंस कंपनी के पास अप्लाई करे. केवल इस शुरुआती 14 दिनों के अवधि के लिए, पिछली इंश्योरेंस पॉलिसी का "थर्ड पार्टी" सेक्शन, ऑटोमैटिक रूप से नए मालिक के नाम पर ट्रांसफर कर दिया जाता है. पॉलिसी का ओन डैमेज सेक्शन पिछले मालिक के नाम पर ही रहता है. यह "ओन डैमेज" सेक्शन नए मालिक को तभी ट्रांसफर होता है, जब इंश्योरेंस पॉलिसी नए मालिक के नाम पर रजिस्टर्ड हो जाती है. इस 14 दिन की अवधि के बाद, यदि नया मालिक इंश्योरेंस पॉलिसी को अपने नाम पर ट्रांसफर कराने में असफल रहता है, तो इंश्योरेंस कंपनी नए मालिक द्वारा हुए किसी भी नुकसान की क्षतिपूर्ति करने के लिए ज़िम्मेदार नहीं होगी, फिर चाहे वो थर्ड पार्टी देयता हो या ओन डैमेज की क्षतिपूर्ति. अगर इंश्योरेंस ट्रांसफर नहीं किया जाता है और पॉलिसी पर अभी भी पहले मालिक का नाम है, तो दुर्घटना के मामले में वाहन या थर्ड पार्टी को होने वाले किसी भी नुकसान के लिए क्लेम का भुगतान इंश्योरेंस कंपनी द्वारा नहीं किया जाएगा. इसके अलावा, कोर्ट नए मालिक की वजह से हुई दुर्घटना के चलते थर्ड पार्टी को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए पहले मालिक को नोटिस भी भेज सकता है. कोर्ट में बिक्री का साक्ष्य पेश करना, वाहन आरसी का ट्रांसफर दिखाना आदि पिछले मालिक के लिए एक परेशान करने वाला प्रोसेस हो सकता है. अगर सेल डीड पूरी होते ही इंश्योरेंस पॉलिसी को नए मालिक के नाम पर तुरंत ट्रांसफर कर दिया जाए, तो सेकेंड हैंड वाहन बेचने वाले और खरीदार दोनों, इस परेशानी से आसानी से बच सकते हैं. यहां पर 5 पॉइंट दिए गए हैं, जिनसे आपको इंश्योरेंस पॉलिसी ट्रांसफर प्रोसेस को समझने में मदद मिलेगी और आप इंश्योरेंस कंपनी के साथ आसानी से ट्रांज़ैक्शन कर सकते हैं.
- जब आप से एक सेकेंड हैंड कार खरीदें, तो यह तय करें कि पहले 14 दिनों के भीतर नए मालिक के नाम पर इंश्योरेंस पॉलिसी ट्रांसफर हो जाए.
- पॉलिसी ट्रांसफर कराने के लिए आपको एक नया प्रपोज़ल फॉर्म भरना होगा और इसे बिक्री के साक्ष्य (जैसे -आरसी का ट्रांसफर, पिछले मालिक द्वारा विधिवत हस्ताक्षर किए हुए फॉर्म 29 और 30), ट्रांसफर शुल्क और पॉलिसी की पिछली कॉपी के साथ इंश्योरेंस कंपनी के पास सबमिट करना होगा. इसके बाद इंश्योरेंस कंपनी ट्रांसफर के एप्लीकेशन को अप्रूव कर देगी.
- आरसी में मालिक का नाम बदलवाने के मामले में, आरटीओ कार्यालय में थोड़ा अधिक समय लग सकता है. लेकिन अपने नाम पर पॉलिसी ट्रांसफर कराने के लिए, ऊपर बताए गए डॉक्यूमेंट्स में से आरसी के अतिरिक्त अन्य डॉक्यूमेंट्स भी काफी हैं. आरटीओ द्वारा जारी नई आरसी मिलने के बाद, नई आरसी की कॉपी इंश्योरर के पास सबमिट करना क्लेम के समय किसी भी समस्या से बचने में मदद करता है.
- अगर आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी ट्रांसफर हो गई है लेकिन आरसी ट्रांसफर नहीं हो पाई है या आपने आरसी ट्रांसफर का प्रमाण इंश्योरेंस कंपनी को सबमिट नहीं किया है, तो क्लेम के मामले में आपको क्लेम प्राप्त करने के लिए, इंश्योरेंस कंपनी को आरसी के ट्रांसफर का प्रमाण देना होगा.
- अगर ट्रांसफर अभी भी प्रोसेस में है, तो क्लेम को अस्वीकृत नहीं किया जाएगा, लेकिन इंश्योरेंस कंपनी को आरसी ट्रांसफर का प्रमाण सबमिट करने के बाद ही क्लेम का भुगतान किया जाएगा.
लोग सेकेंड हैंड कार खरीदते समय इतना कुछ सोचते हैं, लेकिन मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी को अपने नाम पर ट्रांसफर कराने की बात पर ध्यान नहीं देते. दुर्घटना होने की स्थिति में वाहन को पहुंचे नुकसान या थर्ड पार्टी को पहुंचे नुकसान के मामले में, इसकी वजह से बड़ी फाइनेंशियल परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. एक इंश्योरर के रूप में हम आपको सुझाव देते हैं कि निर्धारित समय सीमा के भीतर पॉलिसी ट्रांसफर कराने का ध्यान रखें क्योंकि सेकेंड हैंड वाहन के संबंध में हमेशा, यह एक उचित विकल्प साबित हुआ है! अगर आपकी पॉलिसी समाप्त हो जाती है, तो यह आवश्यक है कि आप तुरंत एक नया कवर खरीदें वर्ना आपको कई फाइनेंशियल और कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
कार इंश्योरेंस कोटेशन की तुलना करें और कवरेज के बारे में जानें ताकि आप अपने वाहन के लिए बेहतरीन प्लान का लाभ उठा सकें.
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